गोधूलि के सन्नाटे में, जहाँ परछाइयाँ नाचती और खेलती हैं,
एक बार मनोरमता के दर्शन ने दिन को सुशोभित कर दिया।
उसकी आँखें, नीले तालाब की तरह, बहुत गहरी और चौड़ी,
प्रतिबिंबित दुःख, और भीतर एक हृदय
वह दर्द से पीड़ित था, और शांत नहीं होगा।
उसके होंठ, गुलाब की पंखुड़ियों की तरह, नाजुक और बढ़िया,
एक ऐसे दिल के रहस्य फुसफुसाए जो दिव्य था।
परन्तु अब, दुःख में, वे दबे हुए और दुबले हो गए हैं,
मानो दर्द को फैलने से रोकना हो।
उसके बाल, सोने की तरह, और आग की तरह जंगली,
एक समय खुशी से चमकता था, लेकिन अब आंसुओं से थक गया है।
उसकी त्वचा, खड़िया के समान, चिकनी और गोरी,
अब उसके हृदय की निराशा का बोझ वहन करती है।
उसका रूप, कविता की तरह, कितना सुंदर और हल्का है,
अब अंतहीन रात के बोझ के नीचे झुकता है।
हालाँकि वह सपनों से जन्मी एक देवी थी,
उसकी सुंदरता उसे जीवन की चीखों से नहीं बचा सकी।
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