गोधूलि के रंग में, एक युवती मेला,
आँखों में आँसू के साथ, उसका दुःख दुर्लभ है,
उस जीवन पर अफसोस जताती है जिसे वह कभी प्रिय मानती थी,
अब वह खो गयी है, उसका हृदय दुःख में डूबा हुआ है।
उसकी हँसी, खामोश, एक बार इतनी मुक्त,
अब उदास, दुख में खोया हुआ,
उसकी ख़ुशी, एक दूर की याद,
दुःख के कफन की तरह उसकी आत्मा कब्ज़े में आ जाती है।
दुनिया, जो कभी उज्ज्वल थी, अब नीरस और धूसर है,
उसका दिल, जो पहले हल्का था, अब मिट्टी की तरह भारी है,
उसके सपने, जो कभी जीवंत थे, अब धुंधले हो गए हैं,
जीवन के रूप में, एक बार पूर्ण, अब खाली अचंभे में।
उसके कदम, जो पहले तेज़ थे, अब धीमे और कमज़ोर हैं,
उसकी आवाज़, जो पहले साफ़ थी, अब नरम और नम्र है,
उसकी आँखें, जो पहले चमकीली थीं, अब धुंधली और धुंधली हो गई हैं,
जीवन की तरह, जो कभी भरा हुआ था, अब भीतर से खाली है।
लेकिन फिर भी, वह अतीत को पकड़कर रखती है,
आशा की एक किरण, एक नाजुक पकड़,
यादों में उसके दिल को शांति मिलती है,
और प्रेम में, उसकी आत्मा मुक्त हो जाती है।
तो उसे रोने दो, उसे शोक मनाने दो,
क्योंकि दुःख की गहराइयों में एक सत्य का जन्म होता है,
वह जीवन भले ही खो जाए, पर कभी मिटेगा नहीं,
और प्यार, भले ही चला गया हो, कभी नहीं बनेगा।
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