गोधूलि के सन्नाटे में, जहाँ परछाइयाँ नाचती और खेलती हैं,
एक युवती मेला, जिसकी आँखों में दुःख है,
हर गुज़रते दिन के साथ उसका दिल दुखता है,
उसकी मुस्कान, अब दुर्लभ, क्षणभंगुर रोशनी की तरह।
उसके बाल, जो कभी गौरव का स्वर्ण मुकुट थे,
अब रात के परदे की तरह नीचे लटक जाएगा,
उसके होंठ, जो कभी गुलाब की चमक की तरह लाल थे,
अब कांपता है, हर खामोश आंसू के साथ।
उसकी त्वचा, जो कभी सफेद खड़िया जैसी चिकनी थी,
अब अंतहीन रात के घाव सहेंगे,
उसकी आँखें, जो कभी आकाश में तारों की तरह चमकती थीं,
अब ग्रहण के चंद्रमा की भाँति धूमिल हो गया है।
उसका रूप, जो कभी परी की उड़ान जैसा मनोहर था,
अब हर भारी आह के साथ झुकना होगा,
उसकी आवाज, जो कभी पक्षियों के गाने जैसी मधुर थी,
अब टूटेगा, हर पीड़ा भरी चीख के साथ।
ओह, दुनिया कैसे अपनी रोशनी खो रही है,
जब उसके जैसी सुंदरता उड़ान भरती है!
क्योंकि उसके दुःख में सारी खुशियाँ फीकी पड़ जाती हैं,
और हर आंसू के साथ, सारी आशा ख़त्म हो जाती है।
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