उसके एकांत के सन्नाटे के बीच,
एक हँसमुख स्त्री रोती है, उसका हृदय दुःखी है।
उसकी आँखों से हीरे जैसे आँसू गिरते हैं,
जैसे दुःख उसकी आत्मा को जकड़ लेता है, और वह सब कुछ चाहती है।
उसकी हँसी, एक बार एक मधुर स्वर,
अब वह चुप हो गई है, अपने दिल के दर्द में खो गई है।
उसकी मुस्कान, एक दूर की, लुप्त होती रोशनी,
जैसे दुःख और चोट उसकी दृष्टि को ख़त्म कर देते हैं।
बाहर की दुनिया, धुंधली धुंध,
उसकी खुशी, एक स्मृति, फीका विस्मय।
वह जो आंसू रोती है, वह एक नदी का प्रवाह है,
जैसा कि उसका दिल, एक भारी बोझ, जानता है।
फिर भी, छाया और दर्द के बीच,
आशा की एक किरण, एक रोशनी बाकी है।
ठीक होने का, फिर से प्यार करने का मौका,
उठने, खड़े होने की ताकत खोजने के लिए।
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