घर पर अकेली अकेली लड़की
तन्हाई के घर में एक लड़की रहती है,
उसका दिल दुख से भर गया, उसकी आत्मा सीपियों से भर गई।
हवा गरजती और विलाप करती है, जैसे एक अकेले भेड़िये की चीख,
जैसे ही वह खिड़की के पास बैठी तारों को गुजरते हुए देखती है।
उसकी आँखें चाँद की तरह हैं, उज्ज्वल और अकेली,
उसका दिल एक समुद्र है, तूफानी और केवल।
वह सूरज के आलिंगन की गर्माहट चाहती है,
लेकिन यह उसकी किस्मत के बादलों के पीछे छिपा है।
घड़ी की टिक-टिक, बजते ढोल की तरह,
जब तक वह सुन्न न हो जाए, मिनटों की गिनती करती रही।
वह सोचती है कि क्या किसी को परवाह है, क्या कोई निकट है,
ओस की तरह गिरते उसके आँसू कोई सुने तो।
लेकिन सन्नाटा बहरा कर देने वाला है, घने कोहरे की तरह,
और अँधेरा गहरा है, अथाह दलदल की तरह।
वह इस जेल में फंसी हुई है, जिसके पास घूमने के लिए कोई चाबी नहीं है,
एक अकेली लड़की, अपने ही जलवे में खोई हुई।
इसलिए वह इंतजार करती है और रोती है, उसे थामने वाला कोई नहीं होता,
उसका हृदय टूट रहा है, उसकी आत्मा बूढ़ी हो रही है।
वह एक ऐसे प्यार का सपना देखती है, जो कभी ख़त्म नहीं होगा,
लेकिन इस सुनसान छाया में यह सिर्फ एक सपना है।
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