गोधूलि बेला के मखमली रंगों में, एक युवती मेला,
उसके बालों में दुःख के आँसुओं के साथ,
उसकी आँखें, नीलमणि के तालाब की तरह,
वह सारा दर्द प्रतिबिंबित हुआ जो वह जानती थी।
उसके होंठ, गुलाब की तरह कोमल वक्र,
एक दुःख भरी मुस्कान, उसके दिल ने सेवा की,
उसकी त्वचा, एक चीनी मिट्टी का कैनवास, चिकनी,
सौंदर्य की उत्कृष्ट कृति, फिर भी अप्रमाणित।
उसका दिल, सपनों का बगीचा,
कभी आशा से भरा था, अब खाली लगता है,
उसकी आत्मा की पंखुड़ियाँ, एक बार उज्ज्वल,
अब मुरझा गया, रोशनी में मुरझा गया।
हवा, निराशा की फुसफुसाहट,
उसके बालों पर वार, अब बहुत दुर्लभ,
सूरज, एक सुनहरी चमक, अब मंद,
उसे छाया में छोड़ देता है, उसमें खो जाता है।
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