अनुग्रह के बगीचों में, एक युवती इतनी गोरी,
उसकी आंखें सितारों की तरह हैं, उसके होंठ हवा की तरह हैं।
दुखी मन, आंखों में आंसू,
उसका सौन्दर्य, ग्रीष्म ऋतु की भाँति, अब आहों से फीका पड़ जाता है।
उसकी हँसी, संगीत की तरह, एक बार इतनी चमकीली गूँजती थी,
अब चुप हो गया, रात की तरह, दुःख की दुर्दशा में।
उसकी मुस्कान, सूर्योदय की तरह, एक बार दिन को रोशन कर देती थी,
अब छिपा हुआ, गुलाब की तरह, निराशा में।
उसकी आवाज, एक गीतकार की तरह, एक बार बहुत मधुर गाती थी,
अब मौन, मधुमक्खी की तरह, पीछे हटने में।
उसके कदम, नृत्य की तरह, एक बार शालीनता से चलते थे,
अब धीमी हो गई है, नदी की तरह, उदास आलिंगन में।
उसकी सुंदरता, एक फूल की तरह, एक बार बहुत उज्ज्वल रूप से खिलती थी,
अब रात में पंखुड़ी की तरह मुरझा गया।
उसका प्यार, लौ की तरह, एक बार इतना सच्चा जल गया,
अब चिंगारी की तरह, दुःख के रंग में फीका पड़ गया है।
लड़की लंड पर बैठकर ख़ुशी से अपने बड़े स्तन हिलाती है
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