गोधूलि के सन्नाटे में, जहाँ परछाइयाँ नाचती और खेलती हैं,
एक गोरी औरत, जिसकी आँखों में दुःख है,
उसका दिल, एक कैनवास, निराशा से रंगा हुआ,
दर्द की उत्कृष्ट कृति, आहों की सिम्फनी।
उसके होंठ, गुलाब, कितने मुलायम और मीठे,
लेकिन आँसू, बारिश की तरह, गिरते हैं, और रुक नहीं सकते,
उसकी त्वचा, खड़िया के समान, चिकनी और गोरी,
फिर भी दुख का दाग, परछाई की तरह, वहीं है।
उसके बाल, सुनहरी रोशनी का झरना,
लेकिन आज रात आँसुओं ने इसकी चमक फीकी कर दी है,
उसकी आँखें, दुःख के गहरे और चौड़े तालाबों की तरह,
उनमें दर्द और ज्वार का संसार है।
उसका रूप, अनुग्रह और आकर्षण की दृष्टि,
फिर भी दुःख ने अपनी छाप छोड़ी है, एक निशान,
उसकी आवाज, एक धुन, शुद्ध और स्पष्ट,
परन्तु दुःख का भार है, वह दूर नहीं हो सकता।
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