एक अकेली लड़की, ओह इतनी अकेली
उसका दिल धीमी गति से धड़कता है, उसकी आत्मा कराहती है
न कोई बात करने वाला, न कोई पकड़ने वाला
उसके आंसू शरद ऋतु की ठंड की तरह गिरते हैं
उसके दिन एक साथ घुलमिल जाते हैं, धूसर और नीरस
न हंसी, न खुशी, न खींचने का प्यार
उसके विचार भटकते रहते हैं, धुंध में खो जाते हैं
बिना किसी चरण के जीवन का
उसकी आँखें, जो कभी चमकीली थीं, अब धुंधली और थकी हुई हैं
उसकी मुस्कान, एक दूर की, फीकी आग
उसकी आवाज़, फुसफुसाहट, नरम और धीमी
उसका दिल, एक भारी, दर्द भरी चमक
लेकिन फिर भी, वह रोमांच और मौज-मस्ती के सपने देखती है
एक ऐसे जीवन की जहां वह कभी अकेली नहीं होती
जहां कभी हंसी-मजाक नहीं होता
और उसका दिल तेजी से धड़कता है, उसकी आत्मा गाती है
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मुझे आशा है कि आपको यह कविता पसंद आएगी! यदि आपका कोई अन्य अनुरोध या प्रश्न हो तो मुझे बताएं।
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