गोधूलि के सन्नाटे में, जहाँ परछाइयाँ नाचती और खेलती हैं,
सुन्दरता की दृष्टि ने अकड़ कर लहराया।
उसके कौवे के बाल, रात की तरह, बह गए,
और उसके होंठ, गुलाब, चमकने लगे।
उसकी त्वचा, एक चीनी मिट्टी का कैनवास, चिकनी और गोरी,
उसकी आँखें, नीलमणि की तरह, अनुग्रह और देखभाल से चमक उठीं।
उसका रूप, एक घंटे का चश्मा, सुडौल और बहुत बढ़िया,
उनकी कृपा, कला का एक काम, दिव्य और दुर्लभ।
उसकी लाल पोशाक, लौ की तरह, लहराती और हिलती रही,
जैसे ही वह चली, एक देवी, अपने खांचे में।
उसकी सुंदरता, एक जादू की तरह, एक छाप छोड़ गई,
और जिसने भी उसे देखा, वह आश्चर्यचकित रह गया।
माँ मोटी एक युवा मालिशिया की कंपनी में मज़ा कर रही है
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